अपना ज्ञान सुधारो भटकाने वालों- नेहरू सुभाष के बचाने वाले थे

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किसी शायर ने खूब सोच-समझकर कहा है -
''हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम ,
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती .''
  और शायद किसी पर यह पंक्तियाँ खरी उतरें न उतरें नेहरू-गांधी परिवार पर ये पंक्तियाँ अक्षरशः खरी उतरती हैं और देश के लिए बार बार अपनी जान कुर्बान करने के बावजूद इस परिवार को विरोधी अपने निशाने पर लेने में लगे ही रहते हैं और पूरी जानकारी न होते हुए भी जनता को बरगलाने को अनाप-शनाप बोलते रहते हैं ,मुंह खोलते रहते हैं .अभी पिछले दिनों इसकी एक बानगी राहुल गांधी द्वारा ५६ दिन की छुट्टी पर जाने को देखने को मिली जिसे लेकर सारे देश में जब तक राहुल नहीं आ गए तब तक अनुमानों की सुनामी लगाकर परिस्थितियों के कारण भगोड़ा आदि कहकर  उन्हें लज्जित करने का वाही तारकासुर प्रयत्न किया गया जो तारकासुर ने शिव पुत्र को पहले न होने देने और बाद में उन्हें समाप्त करने हेतु किया था और वह प्रयत्न न तब सफल होना था और न अब ,राहुल छुट्टियों के बाद सबके सामने आये और सबके लिए अपने उन्हीं प्रयासों में जुट गए जिनमे वे छुट्टियों से पहले जुटे हुए थे और जिनमे केवल जनता की भलाई समाई है किसी तरह की वह दिखावट नहीं जिसका इस्तेमाल कर वे चुनावों के दौरान जनता को बरगलाते और सत्ता को हासिल करने के लिए बेवकूफ बनाने की गलत कोशिशें करते .
     राहुल गांधी के साथ विरोधियों का यह व्यवहार नया नहीं है उनके परिवार को यह सब झेलना ही पड़ता है क्योंकि इस देश में यह पुराना रिवाज़ है यहाँ करने वाले को गालियाँ और अपशब्द ही मिलते हैं और कुछ न करने वाले काम करने वालों पर कीचड उछालने में लगे ही रहते हैं .
   ऐसा ही देखने को मिल रहा है आजकल एक पुराने ऐसे मुद्दे के बारे में जिसे इस परिवार के विरोधी दल भाजपा द्वारा जब भी कहीं अपने आप कुछ काम न हो पा रहा हो ,अपनी छवि का आईना निरंतर टूटता जा रहा हो तब ध्यान भटकाने को उठा लिया जाता है .नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु विमान हादसे में हुई या नहीं हुई ये आजतक रहस्य का विषय है और जब तक ये दुनिया है शायद रहस्य ही रहेगी और भाजपा के लिए अपना देशप्रेम दिखाने का एक गैस का गुब्बारा मुद्दा जिसे जब चाहे फुला लिया और उड़ा  दिया .नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भारत के महान वीर थे और जब तक यह देश है यह विश्व है उनका नाम सम्मान के साथ ही लिया जायेगा और उनके सम्बन्ध में नेहरू जी पर जासूसी के इलज़ाम लगाकर निरंतर नेहरू जी को बदनाम करने की जो साज़िशें की जा रही हैं वह साफतौर पर पूर्ण जानकारी का अभाव और मात्र जनता का ध्यान किसानों की निरंतर हो रही मौत के दुखद पहलू से हटाने की कोशिश कही जाएगी .
  हमारा स्वतंत्रता का इतिहास कहता है कि  हिटलर से निराश सुभाष ने ८ फरवरी १९४३ को जर्मनी छोड़ा .१३ जून को वे टोकियो पहुंचे तथा जापान ने भारत को स्वतंत्र कराने में पूर्ण मदद का आश्वासन दिया .४ जुलाई को सिंगापुर में सुभाष ने आजाद हिन्द फ़ौज की कमान संभाली .उन्होंने ''दिल्ली चलो '' युद्ध का नारा दिया .आजाद हिन्द फ़ौज का सैनिक अभियान फरवरी मार्च १९४४ में हुआ मई में उसने मडोक् पर अधिकार कर लिया फिर भारत भूमि पर कदम रखा तथा सितम्बर तक कैप्टेन सूरजमल के नेतृत्व में सैनिक टुकड़ी वहां बनी रही

The Defeat of the INA and the Collapse of the Provisional Government[edit]
Left to defend[citation needed] Rangoon from the British advance without support from the Japanese, the INA was soundly defeated. Bose had fled Burma and returned to Singapore before the fall of Rangoon; the government Azad Hind had established on the Andaman and Nicobar Islands collapsed when the island garrisons of Japanese and Indian troops were defeated by British troops and the islands themselves retaken. Allegedly Bose himself was killed in a plane crash departing from Taiwan attempting to escape to Russia. The Provisional Government of Free India ceased to exist with the deaths of the Axis, the INA, and Bose in 1945.
The troops who manned the brigades of the Indian National Army were taken as prisoners of war by the British. A number of these prisoners were brought to India and tried by British courts for treason, including a number of high-ranking officers such as Colonel Gurbaksh Singh Dhillon. The defence of these individuals from prosecution by the British became a central point of contention between the British Raj and the Indian Independence Movement in the post-war years.
मई मास में ही जापान की सेना के साथ मिलकर आजाद हिन्द फ़ौज ने कोहिमा पर अधिकार कर लिया लेकिन अंततः यह अभियान असफल रहा ,जापानियों की पराजय के साथ ही आई,एन.ए.की भी पराजय हो गयी तथा उसके अधिकांश सैनिक युद्ध बंदी बना लिए गए .न केवल ये सैनिक युद्ध बंदी बनाये गए बल्कि इन पर देश में ही मुक़दमे आरम्भ हो गए जिस कांग्रेस को बदनाम कर नेहरू पर सुभाष की जासूसी का इलज़ाम लगाया जा रहा है उन्ही नेहरू की कॉंग्रेस ने उन युद्ध बंदियों के लिए एक बचाव समिति का गठन किया था तथा उनकी आर्थिक मदद व् पुनर्वास हेतु ''आजाद हिन्द फ़ौज  जाँच व् राहत समिति का गठन किया था और बचाव पक्ष के वकील के रूप में भी वही कॉंग्रेसी उपस्थित थे जिनके नाम भूलाभाई देसाई ,सर तेजबहादुर सप्रू ,कैलाश नाथ काटजू तथा आसफ अली थे . आज उन्ही नेहरू को बदनाम करने की साजिशें निरंतर जारी हैं जिन्हें भारत में सदैव गुमनामी बाबा के साथ देखा गया और यहाँ तक कयास लगाये गए कि वे गुमनामी बाबा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ही थे .यदि यह अनुमान सही कहा जाये कि वे गुमनामी बाबा ही नेताजी थे तो क्या यह कल्पना भी की जा सकती है कि नेताजी जैसे वीर को कोई अपने बंदी के रूप में रख सकता है और वह भी नेहरू जी जिन्होंने नेताजी को युद्ध बंदी के रूप में यदि वे जीवित थे तो उनका ब्रिटेन को सौंपना उनके ट्रायल के लिए रोकने हेतु ही उनका इस तरह से रहना स्वीकार किया होगा क्योंकि यह भी एक तथ्य एक अंतराष्ट्रीय समाचार पत्र द्वारा सामने लाया गया था कि भारत को एक अंतराष्ट्रीय अपराधी की हैसियत से नेताजी को ब्रिटेन को सौंपने का दायित्व था .आज इस तरह की बातें किया जाना  केवल नेहरू जी वरन सुभाष चन्द्र बोस की शहादत पर भी ऊँगली उठाने के समान है उनकी वीरता को चुनौती देने जैसा है कि एक वीर जो हिटलर जैसे क्रूरतम तानाशाह को एक तरफ कर सकता है वह अपने देश में ही किसी से डरकर निवास करता .वे जो करते थे अपने मन की शक्ति से करते थे अपनी इच्छा से करते थे और नेहरू जी ने भी अगर उनकी जासूसी करायी थी तो इसमें पूर्ण तथ्यों को न जानते हुए उन्हें पूरी तरह से दोषी करार दिया जाना गलत है क्योंकि देश से ऊपर कुछ नहीं और नेहरू जी ने अपने सभी कार्यों द्वारा यही हमेशा दिखाया है .उनके सम्बन्ध में बस यही कहा जा सकता है -
''हज़ारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है,
 बड़ी मुश्क़िल से होता है चमन में दी-दावर पैदा .''
शालिनी कौशिक
   [कौशल]

टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…

वाह . बहुत उम्दा,

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